Ajeeb dastan hai yeh..
अजीब दास्ताँ है ये, कहाँ शुरू कहाँ खतम
ये मंजिलें हैं कौन सी, न तुम समझ सके न हम
(पूरा मुखड़ा दो बार)
ये रोशनी के साथ क्यों, धुआँ उठा चिराग से
(दो बार)
ये ख्वाब देखती हूँ मैं कि जग पड़ी हूँ ख्वाब से
अजीब दास्ताँ है...न हम!
मुबारकें तुम्हें कि तुम किसी के नूर हो गए-(2)
किसी के इतने पास हो कि सबसे दूर हो गए
अजीब दास्ताँ है...न हम!
किसी का प्यार लेके तुम नया जहाँ बसाओगे
(दो बार)
ये शाम जब भी आएगी, तुम हमको याद आओगे
अजीब दास्ताँ है...न हम।
सन् 1960 में आई थी फिल्म 'दिल अपना और प्रीत पराई।' उसी फिल्म का गीत है यह। शंकर-जयकिशन के विराट आर्केस्ट्रा/ मधुर संगीत/ अजेय अकॉर्डियन/ संजीवनी से भरी हुई ढोलक/ सूक्ष्म व कठिन कोरस/ बीट प्रधान पाश्चात्य रंग और लता मंगेशकर की किशोरी आवाज के प्राकृत शहद के कारण 'दिल अपना और प्रीत पराई' के गानों ने समूचे देश को पगला दिया था।
Comments
No responses to “अजीब दास्ताँ है ये, कहाँ शुरू कहाँ खतम”
Post a Comment